लाबुबू क्रेज़: राखी के बाजार में पॉप कल्चर का नया चेहरा बना ट्रेंड? लाबुबू थीम वाली राखियां बनी बहनों की पहली पसंद।

हांगकांग के कलाकार कासिंग लंग द्वारा बनाया गया "लाबुबू" कभी केवल एक कलेक्टिबल टॉय था। आज यह कैरेक्टर भारत में रक्षाबंधन जैसे पारंपरिक त्योहारों में भी जगह बना चुका है। इस बार बाजारों में लाबुबू थीम वाली राखियों की मांग इतनी अधिक है कि कई ऑनलाइन स्टोर्स पर पहले से ही स्टॉक खत्म होने लगा है। लाबुबू एक पॉप‑कल्चर आइकन बन चुका है। पॉप मार्ट ब्रांड के अंतर्गत लॉन्च हुआ लाबुबू अपनी शरारती मुस्कान और मज़ेदार लुक के कारण एशिया में बेहद लोकप्रिय हुआ।

लाबुबू इतना लोकप्रिय क्यों?
अनोखा डिज़ाइन: क्यूट और शरारती लुक जो बच्चों और बड़ों दोनों को आकर्षित करता है।
सोशल मीडिया का असर: इंस्टाग्राम और टिकटॉक पर वायरल वीडियो और कलेक्शन पोस्ट्स ने इसकी फैन फॉलोइंग बढ़ाई।
लिमिटेड एडिशन्स: कलेक्टर्स के लिए लाबुबू स्टेटस सिंबल बन गया।
त्योहारों में पॉप कल्चर की एंट्री:
त्योहारों में आधुनिकता का रंग भरना कोई नई बात नहीं, लेकिन लाबुबू जैसे अंतरराष्ट्रीय कैरेक्टर का भारतीय राखी बाजार में जगह बनाना एक खास उदाहरण है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल वीडियोज़ और सेलिब्रिटी पोस्ट्स ने इस ट्रेंड को हवा दी है। खुदरा विक्रेताओं का कहना है कि लाबुबू राखियों की बिक्री पारंपरिक डिजाइन वाली राखियों से कई गुना अधिक हो रही है।
पॉप कल्चर का बढ़ता असर:
पिछले एक दशक में भारत में पॉप कल्चर की खपत में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। भारत में पॉप कल्चर का यह प्रसार अब छोटे कस्बों तक पहुंच चुका है। सस्ते इंटरनेट और स्मार्टफोन्स ने विदेशी कैरेक्टर्स, एनीमे और के-पॉप जैसी शैलियों को युवा पीढ़ी तक आसानी से पहुंचा दिया है। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऐसे ग्लोबल ट्रेंड्स त्योहारों को नया रूप दे रहे हैं, जिससे युवा इनसे आसानी से जुड़ पा रहे हैं।

पॉप कल्चर के फायदे:
अंतरराष्ट्रीय कला और डिज़ाइन का भारतीय समाज से परिचय।
नए बिज़नेस मॉडल्स और मर्चेंडाइजिंग से रोजगार के अवसर।
त्योहारों में आधुनिकता का नया आकर्षण, जिससे युवाओं की भागीदारी बढ़ती है।
पॉप कल्चर के नुकसान:
परंपरागत भारतीय कला और स्थानीय थीम का पीछे छूट जाना।
लिमिटेड एडिशन प्रोडक्ट्स से युवाओं में ज्यादा खर्च करने का दबाव।
भारतीय संस्कृति की अनोखी पहचान पर ग्लोबल पॉप कल्चर का गहरा असर।
त्योहारों की बदलती तस्वीर पर विशेषज्ञों की राय:
विशेषज्ञों का कहना है कि यह बदलाव पूरी तरह नकारात्मक नहीं है। त्योहार समय के साथ बदलते रहते हैं, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि परंपरा और आधुनिक पॉप कल्चर के बीच संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है। लैबुबू राखियां भले ही बच्चों और युवाओं को आकर्षित कर रही हों, मगर त्योहार तब सबसे खूबसूरत लगते हैं जब वे नए रंग अपनाते हैं लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं। भारतीय डिजाइनरों और शिल्पकारों को भी इस बदलाव में अपनी जगह तलाशनी होगी।