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PM MODI JAPAN VISIT 2025: मोदी को जापान में मिला दारुमा डॉल का उपहार | बोधिधर्म से जुड़ा भारतीय रिश्ता

PM MODI JAPAN VISIT 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया जापान यात्रा कई मायनों में विशेष रही। इस यात्रा के दौरान उन्हें जापान के प्रसिद्ध शोरिनजान-दारुमा-जी मंदिर के मुख्य पुजारी रेव. ऐसीही हिरोसे ने देश की एक अनोखी पारंपरिक वस्तु—दारुमा डॉल भेंट की। यह उपहार न केवल सौहार्द और मित्रता का प्रतीक है, बल्कि भारत और जापान के साझा सांस्कृतिक इतिहास को भी गहराई से जोड़ता है।दारुमा डॉल का स्वरूप भारतीय भिक्षु बोधिधर्म से प्रेरित है, जिन्हें ज़ेन बौद्ध धर्म का संस्थापक माना जाता है। जानें इस अनोखे उपहार का महत्व और भारत-जापान रिश्तों में इसका संदेश।
 
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PM MODI JAPAN VISIT 2025:मोदी ने इस दौरे की शुरुआत टोक्यो से की, जहाँ उनका स्वागत पारंपरिक जापानी शैली में हुआ और उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा से मुलाकात की। दोनों नेताओं के बीच कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई जिनमें रक्षा सहयोग, निवेश समझौते, तकनीकी साझेदारी और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता शामिल रहे। भारत और जापान लंबे समय से “विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदार” (Special Strategic and Global Partnership) हैं, और मोदी की यह यात्रा उस रिश्ते को और गहरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।आर्थिक स्तर पर जापान ने भारत में लगभग 10 ट्रिलियन येन (68 अरब डॉलर) निवेश की घोषणा की, जिसमें सेमीकंडक्टर, एआई, ऊर्जा और इंफ्रास्ट्रक्चर शामिल हैं। मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना को गति देने का भी आश्वासन दिया गया। इससे भारत के औद्योगिक विकास और जापानी कंपनियों को बड़े बाजार का लाभ मिलेगा।

दारुमा डॉल क्या है(What is daruma doll)?

दारुमा डॉल जापान की एक पारंपरिक हस्तनिर्मित गुड़िया है, जो गोल आकार की और खोखली होती है। इसमें हाथ-पैर नहीं होते, जिससे यह अन्य खिलौनों से अलग दिखती है। आमतौर पर इसे लाल रंग में बनाया जाता है और चेहरा सफेद होता है। डॉल की सबसे खास विशेषता है कि यह गिरने पर भी हमेशा सीधी खड़ी हो जाती है। जापान में इसे “Nanakorobi Yaoki” कहावत से जोड़ा जाता है, जिसका अर्थ है “सात बार गिरो, आठवीं बार उठो।” यह दर्शन जीवन में कठिनाइयों से संघर्ष कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

बोधिधर्म से जुड़ाव

दारुमा डॉल का स्वरूप भारत में जन्मे बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म से प्रेरित है। बोधिधर्म छठी शताब्दी में भारत से चीन और फिर जापान पहुंचे और उन्हें ज़ेन बौद्ध धर्म का संस्थापक माना जाता है। जापानी मान्यताओं के अनुसार उन्होंने कई वर्षों तक दीवार की ओर मुख करके ध्यान किया। लगातार साधना के कारण उनके अंग शिथिल हो गए, जिसे प्रतीकात्मक रूप से दारुमा डॉल के रूप में दिखाया गया। इसीलिए इस गुड़िया में हाथ-पैर नहीं बनाए जाते। यह ऐतिहासिक तथ्य भारत और जापान की आध्यात्मिक निकटता का प्रमाण है।

संकल्प और सफलता का प्रतीक

दारुमा डॉल को जापान में विशेष रूप से लक्ष्य प्राप्ति और आत्म-प्रेरणा का प्रतीक माना जाता है। जब कोई व्यक्ति कोई संकल्प लेता है, तो वह डॉल की एक आँख को काले रंग से भर देता है। संकल्प पूरा होने पर दूसरी आँख भी भर दी जाती है। इस परंपरा के कारण यह डॉल केवल सजावट की वस्तु नहीं, बल्कि जीवन में सफलता की ओर प्रेरित करने वाला साधन बन गई है।

जापान में दारुमा डॉल केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक जीवन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। व्यापार की सफलता, चुनाव में जीत, परिवार की खुशहाली या नई योजनाओं की शुरुआत पर लोग इसे शुभ मानते हैं। हर साल नए साल पर लोग नई दारुमा डॉल खरीदते हैं और पुराने साल की डॉल को मंदिर में लौटा देते हैं। इसके बाद उन्हें “दारुमा-कुको” नामक वार्षिक उत्सव में जलाया जाता है। यह रस्म बीते साल की असफलताओं को पीछे छोड़कर नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ने का संदेश देती है।

पीएम मोदी के लिए उपहार का महत्व

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह डॉल भेंट करना जापान की ओर से एक गहरा प्रतीकात्मक संदेश है। मोदी की छवि एक दृढ़ निश्चयी और लक्ष्य साधने वाले नेता की है। दारुमा डॉल, जो लगातार प्रयास और संकल्प की पहचान है, उनके व्यक्तित्व से मेल खाती है। यह उपहार भारत-जापान संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने की ओर एक कदम भी माना जा सकता है। जापान ने इस भेंट के जरिए न केवल मित्रता जताई, बल्कि यह भी याद दिलाया कि उनकी संस्कृति में आज भी भारत की आध्यात्मिक जड़ें मौजूद हैं।

भारत-जापान रिश्तों में नई ऊर्जा

भारत और जापान का संबंध केवल कूटनीतिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भी है। बोधिधर्म जैसे भारतीय संत की शिक्षाओं ने जापानी समाज को गहराई से प्रभावित किया है। दारुमा डॉल इसका जीवंत उदाहरण है। जब यह डॉल प्रधानमंत्री मोदी को सौंपी गई, तो यह दोनों देशों के बीच साझा मूल्यों और आपसी विश्वास का प्रतीक बन गई। आज जब भारत और जापान तकनीक, व्यापार और रणनीतिक क्षेत्रों में मिलकर काम कर रहे हैं, तब ऐसे सांस्कृतिक संकेत रिश्तों में नई ऊर्जा भरते हैं।

दारुमा डॉल हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी बार असफलता क्यों न मिले, इंसान को बार-बार उठ खड़ा होना चाहिए। जापान में यह विचार केवल कहावत या खिलौना नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन बन चुका है। यही संदेश प्रधानमंत्री मोदी को इस डॉल के रूप में मिला। भारत में भी यह संदेश लोगों के लिए प्रेरणादायी हो सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जापान में मिली दारुमा डॉल केवल एक सांस्कृतिक उपहार नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश है। यह दृढ़ता, संकल्प और निरंतर प्रयास की प्रेरणा देती है। साथ ही, यह भारत और जापान के बीच सदियों पुराने आध्यात्मिक रिश्तों की याद भी दिलाती है। जब दुनिया में नए भू-राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं, तब ऐसे प्रतीक दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग को और मजबूती देते हैं। दारुमा डॉल ने एक बार फिर साबित किया है कि भारत और जापान का रिश्ता सिर्फ वर्तमान राजनीति पर आधारित नहीं, बल्कि साझा इतिहास और संस्कृति पर भी टिका है।
 

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