प्रशांत किशोर कौन हैं और उन्होंने बिहार की राजनीति कैसे बदली ?

प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
बिहार की राजनीतिक रणनीति में बड़ा बदलाव लाने वाले प्रशांत किशोर का बचपन रोहतास ज़िले के सासाराम के पास स्थित एक छोटे से गांव में बीता। उनके पिता पेशे से डॉक्टर थे और मां एक साधारण गृहिणी। बचपन के कुछ साल गांव में बिताने के बाद परिवार बक्सर आ गया, जहां से प्रशांत ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी की।
व्यक्तिगत जीवन
प्रशांत किशोर का निजी जीवन बेहद सादा और परिवार-केंद्रित रहा है। उनकी पत्नी, डॉ. जहान्वी दास, असम के गुवाहाटी की रहने वाली हैं और खुद भी चिकित्सा पेशे से जुड़ी हैं। दोनों का एक बेटा है, जो अक्सर प्रशांत की राजनीतिक व्यस्तताओं से दूर परिवार की सामान्य दिनचर्या में नजर आता है।
संयुक्त राष्ट्र से राजनीति तक का सफर
राजनीति में सक्रिय होने से पहले प्रशांत किशोर ने करीब आठ साल तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया। संयुक्त राष्ट्र से जुड़कर उन्होंने कई देशों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में काम किया।
यह वैश्विक अनुभव न सिर्फ उनके नजरिये को व्यापक बनाता है, बल्कि आगे चलकर उनकी राजनीतिक रणनीतियों में लोगों से सीधे जुड़ने और जमीनी मुद्दों को समझने की क्षमता भी विकसित करता है।
साधारण परिवार से राष्ट्रीय पहचान तक
प्रशांत किशोर का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उन्होंने पढ़ाई छोड़कर सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी दिखाई और बाद में राजनीति की ओर रुख किया। उनका करियर अचानक सुर्खियों में तब आया जब उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत में अहम भूमिका निभाई।
नरेंद्र मोदी से मुलाकात और साथ में काम: प्रशांत किशोर का राजनीतिक रणनीति में बड़ा नाम बनने का सफर 2011-12 के दौरान शुरू हुआ, जब उन्होंने तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। उस समय मोदी 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे थे।
प्रशांत किशोर ने मोदी की चुनावी रणनीति के लिए Citizens for Accountable Governance (CAG) नाम का ग्रुप बनाया।
‘चाय पर चर्चा’ अभियान – देशभर में चाय स्टॉलों पर मोदी से संवाद कराने की अनोखी रणनीति।
3D होलोग्राम रैलियां – पहली बार भारत में एक ही समय में कई जगहों पर वर्चुअल रैली का आयोजन।
सोशल मीडिया पर सशक्त उपस्थिति और डेटा-ड्रिवन कैंपेनिंग।
इन रणनीतियों ने नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
2014 की जीत के बाद प्रशांत किशोर ने भाजपा से दूरी बना ली। सूत्रों के मुताबिक, पीके और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में चुनाव बाद रणनीति को लेकर मतभेद हुए। उनको पीएमओ में शामिल होने का प्रस्ताव मिला था, लेकिन किशोर ने स्वतंत्र रूप से काम करने का रास्ता चुना। इसके बाद उन्होंने बिहार में महागठबंधन (नीतीश कुमार और लालू यादव) के लिए चुनावी रणनीति तैयार की, जिससे भाजपा से उनका अलगाव और स्पष्ट हो गया।
2015 बिहार विधानसभा चुनाव – बड़ा मोड़: 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन की चुनावी रणनीति संभाली।
- नया नारा: "बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है"
- हर पंचायत तक पहुंचने की योजना
- डेटा और फील्ड टीमों का इस्तेमाल
इस रणनीति ने भाजपा की जीत की संभावनाओं को कम कर दिया और महागठबंधन को ऐतिहासिक जीत दिलाई। इस चुनाव के बाद PK को देश का सबसे बड़ा चुनावी रणनीतिकार कहा जाने लगा।
भारतीय राजनीति के मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट और किंगमेकर
साल 2014 में नरेंद्र मोदी के साथ चुनावी सफलता के बाद प्रशांत किशोर ने अपनी संस्था CAG को नया रूप देते हुए इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) की स्थापना की। यह कदम उनके करियर का अहम मोड़ साबित हुआ, क्योंकि इसके जरिए उन्होंने देश की कई बड़ी राजनीतिक पार्टियों की चुनावी रणनीतियों में क्रांतिकारी बदलाव लाया।
बिहार में I-PAC की रणनीति ने नीतीश कुमार को तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया। इसके बाद पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए ऐसा चुनावी खाका तैयार किया जिससे कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की।
आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की पार्टी YSRCP के साथ उनकी साझेदारी ने भी इतिहास रच दिया। 2019 में पार्टी ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की और रेड्डी मुख्यमंत्री बने।
दिल्ली में 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए बनाई गई किशोर की रणनीति ने शानदार नतीजे दिए। अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने 70 में से 62 सीटों पर जीत हासिल कर विपक्ष को लगभग साफ कर दिया।
2021 में पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव प्रशांत किशोर के करियर का एक और बड़ा मुकाम रहा। तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने उन्हें चुनावी रणनीतिकार बनाया और उनकी योजनाओं के दम पर ममता बनर्जी ने न सिर्फ भाजपा को रोक दिया, बल्कि सत्ता में शानदार वापसी भी की।
उसी साल तमिलनाडु में DMK प्रमुख एम. के. स्टालिन ने भी किशोर की चुनावी टीम को चुना। नतीजा – DMK ने 159 सीटों पर जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया और स्टालिन पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।
‘जन सुराज’ – बिहार की जमीन पर उतरते PK
रणनीति बनाने से आगे बढ़कर प्रशांत किशोर ने खुद जनता के बीच जाने का फैसला किया और 2 अक्टूबर 2022 को उन्होंने ‘जन सुराज पदयात्रा’ शुरू की।
- लगभग 3,500 किलोमीटर की पदयात्रा
- 5,000 से अधिक गांवों का दौरा
- हर वर्ग और समुदाय से संवाद
यह यात्रा सिर्फ वोट मांगने के लिए नहीं थी, बल्कि लोगों की तकलीफें, शिक्षा, स्वास्थ्य, और बेरोजगारी जैसी समस्याएं समझने का प्रयास थी।
जन सुराज पार्टी का गठन
इस यात्रा का परिणाम 2 अक्टूबर 2024 को जन सुराज पार्टी के रूप में सामने आया।
पूर्व BJP सांसद उदय सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।
पूर्व राजनयिक मनोज भारती को बिहार इकाई का अध्यक्ष चुना गया।
पार्टी ने 2025 विधानसभा चुनाव में 75 EBC उम्मीदवार और 40 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने का वादा किया।
PK ने खुद कोई पद नहीं लिया, जिससे यह संदेश गया कि यह पार्टी व्यक्तिपूजा नहीं, बल्कि आम लोगों की आवाज़ होगी।
बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव
बिहार की राजनीति लंबे समय से जातीय समीकरणों पर टिकी रही है। प्रशांत किशोर ने इसे चुनौती दी।
- चुनावी रणनीति में आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
- विकास और शिक्षा पर केंद्रित एजेंडा
- अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने का प्रयास
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि PK ने बिहार में ‘तीसरा विकल्प’ तैयार किया है, जो सिर्फ जेडीयू और आरजेडी के बीच की पारंपरिक लड़ाई को तोड़ सकता है।
बदलाव का बीज बो चुका है PK
चाहे 2025 के चुनाव में जन सुराज पार्टी कितनी सीटें जीते, प्रशांत किशोर ने बिहार की राजनीति में बदलाव का बीज बो दिया है। रणनीतिकार से नेता तक का उनका सफर दिखाता है कि बिहार के लोग पारंपरिक जातीय समीकरणों से हटकर विकास, शिक्षा और रोजगार की राजनीति को सुनने के लिए तैयार हैं। भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि PK सिर्फ एक रणनीतिकार के रूप में जाने जाएंगे या बिहार की राजनीति में नई दिशा देने वाले नेता के रूप में इतिहास रचेंगे।