वृंदावन की गलियों में अगर किसी नाम की सबसे ज़्यादा चर्चा होती है तो वह है संत प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज। 30 मार्च 1969 को साधारण से परिवार में जन्मे प्रेमानंद जी महाराज ने 13 साल की उम्र में ही सांसारिक जीवन त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग पकड़ लिया। उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले के छोटे से गांव सरसौल से निकलकर वे वृंदावन पहुंचे और वे राधा वल्लभ सम्प्रदाय से जुड़े, और बड़े गुरुजी (गौरंगी शरणजी महाराज) से निज मंत्र प्राप्त कर सहचारी भाव की साधना अपनाई। उनकी प्रवचन शैली प्रेम और निःस्वार्थ सेवा पर आधारित है, जिसने उन्हें करोड़ों भक्तों का पसंदीदा गुरु बना दिया है।
भक्ति का अलग अंदाज़
प्रेमानंद जी महाराज का प्रवचन सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं, बल्कि भावनाओं से जुड़ा हुआ है। रात दो बजे की पदयात्रा हो या भक्तों के साथ गीतों में खो जाने का अंदाज़—उनका हर कदम लोगों को आध्यात्मिकता से जोड़ता रहा है। यही कारण है कि वृंदावन से लेकर विदेशों तक करोड़ों अनुयायी उन्हें अपना गुरु मानते हैं।
बीमारी से जूझते हुए भी भक्ति की राह पर अडिग
लेकिन इस भक्ति की राह में एक बड़ी चुनौती भी रही – लगभग दो दशकों से वे पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज (ADPKD) नामक गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। इस बीमारी ने उनकी दोनों किडनियों की क्षमता को प्रभावित कर दिया, जिससे उन्हें सप्ताह में कई बार डायलिसिस कराना पड़ता है। कुछ समय पहले सीने में दर्द की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। डॉक्टरों ने भले ही उन्हें छुट्टी दे दी, मगर उनका इलाज जारी है। यही कारण है कि पहले जो पदयात्रा पैदल होती थी, अब वे कार से ही भक्तों के दर्शन करते हैं।
लोकप्रियता के साथ विवाद भी
जैसे-जैसे उनका नाम बढ़ा, विवाद भी उनके साथ जुड़े। वृंदावन की एक सोसायटी ने रात में होने वाली पदयात्रा का विरोध किया, जिसे शांतिपूर्ण तरीके से हल कर लिया गया। हाल ही में सोशल मीडिया पर उनके एक भाषण को लेकर हंगामा खड़ा हो गया, जिसमें उन्होंने युवाओं की चारित्रिक स्थिति पर टिप्पणी की थी। यह बयान वायरल हुआ और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। संत ने बिना आक्रामक हुए, संवाद और शांति का रास्ता अपनाया।
आधुनिक तकनीक AI से तैयार किए गए डिपफेक वीडियो ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। लेकिन उनके आश्रम ने समय रहते जनता को सतर्क कर दिया और ऐसे वीडियो न फैलाने की अपील भी की।
विवाद बढ़ने के साथ-साथ उन्हें सोशल मीडिया पर जान से मारने की धमकियां भी मिलीं। पुलिस को सुरक्षा बढ़ानी पड़ी। लेकिन इन सबके बीच भी प्रेमानंद जी महाराज का संदेश वही रहा – "हमारा काम किसी को दुख देना नहीं, बल्कि प्रेम से जोड़ना है।"
प्रेमानंद जी महाराज की कहानी सिर्फ एक संत की जीवनी नहीं, बल्कि यह उस संघर्ष और संयम की दास्तां है जिसमें भक्ति, बीमारी, लोकप्रियता और आलोचना सब कुछ शामिल है। आज भी, बीमारी की तकलीफ सहते हुए भी वे लाखों लोगों को भक्ति का संदेश दे रहे हैं। उनकी आवाज़ में वही पुराना विश्वास गूंजता है – "प्रेम और संवाद ही जीवन का सबसे बड़ा समाधान है।"