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हरियाणा का गाँव रोहनात: जहाँ दशकों तक नहीं लहराया तिरंगा

पढ़ें हरियाणा के रोहनात गाँव की अनसुनी कहानी, जहाँ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद दशकों तक तिरंगा नहीं लहराया गया। जानें इस ऐतिहासिक गाँव का बलिदान, संघर्ष और आज़ादी की जंग से जुड़ा इतिहास।

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हरियाणा का रोहनात: जहाँ दशकों तक नहीं लहराया तिरंगा INDEPENDENCE DAY SPECIAL

रोहनात, हरियाणा - भारत अपनी आज़ादी के 78 साल का जश्न मना रहा है, लेकिन हरियाणा के भिवानी जिले में स्थित एक छोटा सा गाँव, रोहनात, आज भी अपने माथे पर 1919 के जलियांवाला बाग़ जैसी एक खूनी दास्तान का बोझ लिए बैठा है। यह गाँव, जो अपनी बहादुरी और बलिदान के लिए जाना जाता है, आज़ादी के इतने सालों बाद भी भारतीय तिरंगे को नहीं फहराता। यह कोई विद्रोह नहीं, बल्कि उस दर्दनाक इतिहास का एक मौन प्रदर्शन है, जिसे गाँव के लोग आज भी नहीं भूले हैं।

क्रूरता का वो अध्याय: 1857 और 1919 की कहानी

रोहनात का इतिहास ब्रिटिश हुकूमत के जुल्मों का गवाह है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, इस गाँव ने अंग्रेजों के खिलाफ़ जोरदार आवाज़ उठाई। इतिहासकारों के अनुसार, इस विद्रोह को कुचलने के लिए ब्रिटिश सेना ने गाँव पर हमला किया, लोगों को बेरहमी से मारा और उनकी ज़मीनों को नीलाम कर दिया। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, लोगों को रोड रोलर से कुचला गया और तोप से उड़ाया गया था। इस घटना के बाद, 1919 में भी गाँव के लोगों ने ब्रिटिश सरकार के 'अँगूठा टैक्स' और अन्य अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध किया, जिसका नतीजा एक और खूनी संघर्ष था।
इस क्रूरता के जवाब में, ब्रिटिश सेना ने गाँव में आग लगा दी, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया और पुरुषों को बेरहमी से मारा। गाँव के बुजुर्गों के अनुसार, इस खूनी संघर्ष में गाँव के सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान गई।

शहीदों की पवित्र भूमि और संकल्प

आज भी, गाँव के लोग उन शहीदों की याद में एक स्मारक बनाए हुए हैं। यह स्मारक उन लोगों की याद दिलाता है जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अपने प्राणों का बलिदान दिया। गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि उस घटना के बाद से, गाँव के लोगों ने संकल्प लिया कि जब तक सरकार इस बलिदान को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देती और शहीदों को सम्मान नहीं मिलता, वे अपने गाँव में तिरंगा नहीं फहराएंगे। यह संकल्प सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं है, बल्कि गाँव की युवा पीढ़ी भी इस बात से पूरी तरह वाकिफ है और अपने पूर्वजों के फैसले का सम्मान करती है।

मुख्यमंत्री का दौरा और बदला इतिहास

इस मौन विरोध का सिलसिला कई दशकों तक चला, जब तक कि 23 मार्च 2018 को हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने गाँव का दौरा नहीं किया। शहीद दिवस के अवसर पर, खट्टर ने इस गाँव में पहली बार तिरंगा फहराया, जो आजादी के बाद पहली बार हुआ था। उन्होंने गाँव के बलिदान को स्वीकार करते हुए, शहीदों के सम्मान में एक शहीद स्मारक और संग्रहालय बनाने की घोषणा की। यह दौरा गाँव के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। सरकार के इस कदम के बाद, गाँव के लोगों ने अपने वर्षों पुराने संकल्प को पूरा माना और तिरंगे को सम्मान के साथ स्वीकार किया।

सरकारी उदासीनता और गाँव का दर्द

हालांकि, मुख्यमंत्री के दौरे के बाद भी, गाँव के लोगों की कुछ मांगों पर काम की गति धीमी रही। गाँव के लोगों का कहना है कि उन्होंने कई बार सरकार को ज्ञापन दिए हैं, लेकिन शहीदों के सम्मान में किए गए वादे अभी भी पूरी तरह से जमीन पर नहीं उतरे हैं। यह सरकारी उदासीनता गाँव के दर्द को और गहरा करती है।

रोहनात गाँव की कहानी सिर्फ एक गाँव की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन अनगिनत गुमनाम शहीदों की कहानी है जिनके बलिदान को इतिहास के पन्नों में जगह नहीं मिली। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि आज़ादी की लड़ाई सिर्फ बड़े शहरों और बड़े नेताओं तक सीमित नहीं थी, बल्कि देश के कोने-कोने में, हर गाँव और हर घर में लड़ी गई थी

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