काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचीं सारा अली खान, ट्रोलर्स ने सोशल मीडिया पर उठाए धार्मिक सवाल

बॉलीवुड एक्ट्रेस सारा अली खान अक्सर अपनी सादगी और धार्मिक आस्था के लिए सुर्खियों में रहती हैं। हाल ही में वे वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर पहुँचीं और वहाँ पूजा-अर्चना कर भगवान शिव का आशीर्वाद लिया। लेकिन जैसे ही उनकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, उन्हें जमकर ट्रोल किया जाने लगा। कई लोगों ने उन पर तीखी टिप्पणी करते हुए लिखा – “तुम मुस्लिम नहीं हो, शर्म करो।”
सोशल मीडिया पर उठा विवाद
सारा अली खान ने अपने इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया अकाउंट्स पर काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन की तस्वीरें साझा कीं। वे पारंपरिक भारतीय परिधान में नज़र आ रही थीं और मंदिर में श्रद्धा के साथ पूजा कर रही थीं। लेकिन कुछ यूज़र्स ने इस पर आपत्ति जताई और उन्हें धर्म बदलने तक की नसीहत दे डाली।
कुछ कमेंट्स में लिखा गया – “अगर तुम मुस्लिम हो तो मंदिर क्यों जा रही हो?” तो किसी ने कहा, “ये सिर्फ दिखावा है, असली मुसलमान ऐसा नहीं करता।”
विवाद के बीच समर्थन की आवाज़
जहाँ एक ओर आलोचना की बौछार हुई, वहीं दूसरी ओर कई लोग सारा अली खान के समर्थन में भी सामने आए। समर्थकों का कहना है कि भारत की सबसे बड़ी खूबसूरती उसकी गंगा-जमुनी तहज़ीब है, जहाँ हर धर्म का सम्मान किया जाता है।
एक यूज़र ने लिखा – “सारा की मां अमृता सिंह सिख परिवार से हैं और पिता सैफ अली खान मुस्लिम हैं। ऐसे में अगर वे दोनों धर्मों की परंपराओं का सम्मान करती हैं तो इसमें गलत क्या है?”
दूसरे यूज़र ने लिखा – “भगवान को मानना किसी एक धर्म की सीमा में बंधा नहीं है। अगर सारा शिव भक्त हैं तो यह उनकी निजी आस्था है।”
क्या कहती है पत्रकारिता दृष्टि?
भारतीय समाज में धार्मिक पहचान को लेकर सवाल उठाना कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब कोई सार्वजनिक शख्सियत अपनी व्यक्तिगत आस्था का प्रदर्शन करता है, तो यह अक्सर विवाद का विषय बन जाता है। सारा अली खान का मामला भी ऐसा ही है, जहाँ उनकी व्यक्तिगत श्रद्धा को ट्रोलिंग का निशाना बना दिया गया।
दरअसल, सारा पहले भी कई बार मंदिरों में दर्शन कर चुकी हैं। वे महाकाल मंदिर, बद्रीनाथ और वैष्णो देवी भी जा चुकी हैं। हर बार सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा है।
आस्था पर सवाल क्यों?
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी इंसान की धार्मिक आस्था उस व्यक्ति का निजी विषय है। चाहे वह मंदिर जाए, मस्जिद या गुरुद्वारा – उसकी भक्ति को दूसरों की सोच से नहीं आँका जा सकता।
समाजशास्त्रियों का कहना है कि इस तरह की ट्रोलिंग हमारे समाज की असहिष्णु प्रवृत्ति को दर्शाती है, जहाँ किसी को यह तय करने की आज़ादी नहीं दी जाती कि वह किस तरह ईश्वर की उपासना करे।
सारा अली खान का काशी विश्वनाथ मंदिर जाना एक श्रद्धा का कार्य था, न कि कोई राजनीतिक स्टंट। उन्हें “मुस्लिम नहीं हो” कहकर शर्मिंदा करना न सिर्फ उनकी आस्था का अपमान है, बल्कि भारतीय संस्कृति की मूल भावना के भी खिलाफ है।
भारत जैसे विविधता वाले देश में हर किसी को अपनी पसंद से पूजा और प्रार्थना करने का अधिकार है। और सारा अली खान ने उसी अधिकार का उपयोग किया। आलोचकों के बजाय समाज को उनकी इस आस्था का सम्मान करना चाहिए।