Eduquity tender controversy: क्या बीजेपी सरकार ने पारदर्शिता दांव पर लगाई?
एडिक्विटी टेंडर विवाद और SSC Scam ने भारत की परीक्षा प्रणाली को कटघरे में खड़ा कर दिया है। 2014 से 2025 तक कैसे एडिक्विटी ने टेंडर जीते, छात्रों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा और बीजेपी सरकार क्यों चुप है, जानिए इस विस्तृत रिपोर्ट में।
Sep 27, 2025, 16:59 IST
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Eduquity tender controversy 2025:भारत में सरकारी परीक्षाएँ केवल नौकरियों का साधन नहीं बल्कि करोड़ों युवाओं के लिए उम्मीद की किरण होती हैं। लेकिन जब इन परीक्षाओं में गड़बड़ी होती है तो यह केवल छात्रों की मेहनत पर नहीं बल्कि पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर चोट करता है।
हाल के वर्षों में SSC Scam और एडिक्विटी टेंडर घोटाला ऐसे ही विवादों के केंद्र में हैं। विपक्ष ने सीधे तौर पर बीजेपी पर आरोप लगाया है कि उसने एडिक्विटी जैसी अपेक्षाकृत छोटी कंपनी को बड़े-बड़े टेंडर दिलवाने के लिए नियमों में फेरबदल किया।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने गंभीर आरोपों और छात्रों की नाराज़गी के बावजूद बीजेपी क्यों चुप है?
एडिक्विटी कंपनी की कहानी: छोटे से बड़े खिलाड़ी तक (2000–2025)
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2000: एडिक्विटी करियर टेक्नोलॉजीस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना।
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2016–18: कुछ छोटे राज्य स्तरीय कॉन्ट्रैक्ट हासिल किए।
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2018-2019: कंपनी का सालाना टर्नओवर केवल 7 करोड़ रुपये।
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2019: SSC टेंडर में पहली बार नाम चर्चा में आया।
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2024: कंपनी का टर्नओवर 135 करोड़ रुपये तक पहुँच गया।
मात्र 8 साल में यह कंपनी छोटे स्तर से निकलकर SSC, NTA और MPESB जैसी राष्ट्रीय संस्थाओं की परीक्षा आयोजित करने लगी। यही तेज़ी से बढ़ी हुई ग्रोथ सबसे ज़्यादा संदिग्ध मानी जा रही है।
टाइमलाइन ऑफ कॉन्ट्रोवर्सी (2019–2025)
2019: SSC टेंडर विवाद
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TCS जैसी दिग्गज कंपनी टेक्निकल राउंड में आगे थी।
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अचानक टेंडर कैंसिल कर दिया गया।
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विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह फैसला एडिक्विटी को फायदा पहुँचाने के लिए किया गया।
2020: NTA टेंडर और JEE/NEET गड़बड़ी
15 जून 2020 को DGT (Directorate General of Training) ने एडिक्विटी को तकनीकी राउंड में अयोग्य (Ineligible) घोषित कर दिया। इसका मतलब यह था कि एडिक्विटी उस टेंडर में आगे नहीं बढ़ पाएगी। लेकिन यहीं से घटनाओं की कड़ी शुरू हुई।
07 दिसंबर 2020 को एडिक्विटी ने NTA (National Testing Agency) का टेंडर भरा। शुरुआती राउंड में एडिक्विटी पिछड़ गई और हारने की स्थिति में थी। इसके बाद अचानक टेंडर को 29 अप्रैल 2021 को कैंसिल कर दिया गया और नए नियमों के साथ दोबारा जारी किया गया। नया परिणाम 23 नवंबर 2021 को आया और इस बार एडिक्विटी विजेता बनी। सवाल यही है कि जब पहली बार कंपनी हार गई थी तो टेंडर क्यों रद्द किया गया और नियम क्यों बदले गए। परीक्षा के दौरान छात्रों ने सर्वर डाउन और प्रश्नपत्र अधूरा आने की शिकायत की।
2021: MPESB भर्ती परीक्षा का कॉन्ट्रैक्ट
मध्य प्रदेश प्रोफेशनल एग्ज़ामिनेशन बोर्ड (MPESB/MPPEB) का केस भी बिल्कुल ऐसा ही था। 2021–2022 के दौरान एडिक्विटी टेंडर में हार रही थी। लेकिन फिर से वही पैटर्न दोहराया गया: टेंडर कैंसिल → नया टेंडर → एडिक्विटी की एंट्री परीक्षा के दौरान कई तकनीकी गड़बड़ियाँ सामने आईं। ग्वालियर और भोपाल जैसे सेंटर पर सर्वर डाउन हो गया और हजारों छात्रों की परीक्षा प्रभावित हुई। मध्य प्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (व्यापम) ने परीक्षा का कॉन्ट्रैक्ट एडिक्विटी को दिया। ग्वालियर और भोपाल केंद्रों पर तकनीकी गड़बड़ियों के कारण हजारों छात्र परीक्षा नहीं दे सके।
2022: बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ
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जून: MPESB परीक्षा में सर्वर फेल।
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अगस्त: NTA NET परीक्षा में गलत एड्रेस दिए गए, सुप्रीम कोर्ट ने री-एग्जाम का आदेश दिया।
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सोशल मीडिया पर #ExamScam ट्रेंड करने लगा।
2023: अदालत और विपक्ष की दखल
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जनवरी: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिकाएँ दाखिल हुईं।
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कांग्रेस और आप ने संसद में यह मुद्दा उठाया।
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छात्रों ने दिल्ली, भोपाल और लखनऊ में प्रदर्शन किए।
2024: घोटाले की गूंज और गहराई
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जनवरी: SSC टेंडर फिर से एडिक्विटी को मिला, विपक्ष ने संसद में हंगामा किया।
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जून: MPESB परीक्षा दोबारा सर्वर फेल होने के कारण रद्द।
2025: घोटाला राजनीतिक मुद्दा बना
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विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह "सबसे बड़ा शिक्षा घोटाला" है।
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सोशल मीडिया और मीडिया चैनल्स पर बीजेपी की चुप्पी सबसे बड़ा सवाल बनी।
छात्रों के सपने और मेहनत दांव पर
परीक्षा गड़बड़ियों का सबसे बड़ा असर छात्रों पर पड़ा।
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सर्वर डाउन होने से आधे पेपर अधूरे रह गए।
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कई छात्रों को एडमिट कार्ड पर गलत केंद्र का एड्रेस मिला।
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परीक्षा बार-बार रद्द हुई, जिससे तैयारी और पैसे दोनों बर्बाद हुए।
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ग्रामीण और गरीब परिवारों के छात्रों ने कहा कि उन्हें सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ।
विपक्ष का सीधा हमला
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इस घोटाले को बीजेपी का एजुकेशन घोटाला बताया।
कांग्रेस का बयान
"बीजेपी सरकार ने युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ किया है। एडिक्विटी जैसी कंपनी को फायदा पहुँचाने के लिए नियम बदले गए।"
आप का बयान
"यह परीक्षा प्रणाली पर सबसे बड़ा हमला है। अगर निष्पक्षता खत्म हुई तो लोकतंत्र पर भी सवाल खड़ा होगा।"
बीजेपी की सफाई और चुप्पी
बीजेपी ने अपनी ओर से कुछ सफाई ज़रूर दी लेकिन आधिकारिक तौर पर बड़े नेताओं की चुप्पी अब भी बरकरार है।
सरकारी तर्क:
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टेंडर कानूनी प्रक्रिया के तहत दिए गए।
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तकनीकी गड़बड़ियाँ "अस्थायी समस्या" हैं।
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री-एग्जाम से छात्रों को राहत दी गई।
लेकिन विपक्ष और छात्र संगठनों को यह जवाब अधूरा लगता है।
अदालत का हस्तक्षेप
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सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने कहा कि परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
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NET परीक्षा की गड़बड़ियों पर री-एग्जाम का आदेश।
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MPESB भर्ती परीक्षा की जाँच की याचिकाएँ अब भी लंबित।
सोशल मीडिया का रोल
सोशल मीडिया ने इस घोटाले को बड़ा रूप दिया।
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ट्विटर (X) पर #SSCScam, #BJPExamScam, #EquityScam ट्रेंड में रहे।
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यूट्यूब और फेसबुक पर छात्रों ने लाइव अनुभव साझा किए।
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कई न्यूज़ पोर्टल्स ने इसे "शिक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा घोटाला" कहा।
विशेषज्ञों की राय
शिक्षा और आईटी क्षेत्र के विशेषज्ञों ने कहा:
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इतनी बड़ी परीक्षाओं के लिए केवल अनुभवी कंपनियों को चुना जाना चाहिए।
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टेंडर बार-बार एडिक्विटी को मिलना संदेहास्पद है।
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पारदर्शिता खत्म हुई तो छात्रों का भरोसा टूट जाएगा।
चुनावी असर: बीजेपी के लिए खतरा?
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विपक्ष इसे 2025 और आगे के चुनावों में बड़ा मुद्दा बना सकता है।
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युवा और बेरोज़गार वर्ग पहले ही नाराज़ है।
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अगर बीजेपी ने पारदर्शी जांच नहीं करवाई तो यह मामला राजनीतिक नुकसान पहुँचा सकता है।
SSC Scam और एडिक्विटी टेंडर घोटाला केवल परीक्षा का मुद्दा नहीं है, यह युवाओं के भविष्य और लोकतंत्र की पारदर्शिता से जुड़ा हुआ है।
सबसे बड़ा सवाल यही है:
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क्या बीजेपी पारदर्शी जांच कराएगी?
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क्या छात्रों को न्याय मिलेगा?
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या फिर यह घोटाला भी राजनीतिक गलियारों में दब जाएगा?