कृष्ण जन्माष्टमी 2025 कब है? जानिए तिथि, कथा और पूजा विधि
Krishnajanmashtami2025:कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और जीवन दर्शन का प्रतीक भी है। हर साल लाखों श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं, मंदिर सजाते हैं और रात 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं। लेकिन 2025 में यह पर्व कब मनाया जाएगा? इसकी तिथि क्या है? श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी क्या है और पूजा कैसे की जाती है? आइए विस्तार से जानते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की पौराणिक कथा: भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था। उनकी माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। देवकी कंस की बहन थीं और कंस एक अत्याचारी राजा था। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि देवकी की आठवीं संतान ही उसका अंत करेगी, तब उसने दोनों को कारागार में बंद कर दिया। कंस ने एक-एक कर देवकी की सात संतानों को मार डाला। लेकिन जब आठवीं संतान का समय आया, तब भगवान विष्णु ने स्वयं श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। रात के समय तेज बारिश हो रही थी और कारागार की सभी जंजीरें टूट गईं, पहरेदार सो गए, और वसुदेव ने नवजात श्रीकृष्ण को यमुना पार कर गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के घर पहुंचाया। उधर, वसुदेव यशोदा की नवजात कन्या को लेकर वापस मथुरा लौट आए। कंस ने जैसे ही उस कन्या को मारने की कोशिश की, वह आकाश में उड़ गई और बोली – "हे कंस! तेरा संहार करने वाला तो गोकुल में जन्म ले चुका है।"
कृष्ण जन्माष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
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तिथि: शनिवार, 16 अगस्त 2025
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अष्टमी तिथि प्रारंभ: 15 अगस्त की रात 11:49 बजे
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अष्टमी तिथि समाप्त: 16 अगस्त की रात 09:34 बजे
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मध्यरात्रि पूजा का समय (निशिता काल): 16 अगस्त की रात 12:00 बजे से 12:45 बजे
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व्रत पारण (उपवास तोड़ने का समय): 17 अगस्त को सुबह 06:00 बजे के बाद
नोट: जन्माष्टमी की तिथि निर्धारण चंद्र पंचांग के अनुसार होती है। श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के मध्यरात्रि में हुआ था, इसलिए उसी मुहूर्त में पूजा करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि
जन्माष्टमी के दिन व्रत और पूजा का विशेष महत्व होता है। नीचे दी गई विधि से आप भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर सकते हैं:
1. उपवास (व्रत)
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सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
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दिनभर फलाहार करें या निर्जल व्रत रखें।
2. मंदिर और झांकी सजावट
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श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की झांकियां सजाएं।
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घर में या मंदिर में झूला सजाकर भगवान को झुलाएं।
3. पूजा सामग्री
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तुलसी के पत्ते, माखन-मिश्री, दूध-दही, पंचामृत, फल, फूल, अगरबत्ती, दीपक, घंटी
4. पूजा विधि
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श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की मूर्ति को स्नान कराएं (अभिषेक करें)
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पंचामृत और शुद्ध जल से स्नान कराएं
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वस्त्र पहनाएं और मुकुट, मोरपंख, बंसी आदि सजाएं
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आरती करें, भजन गाएं और मंत्रों का जाप करें
5. मंत्र
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥
6. प्रसाद
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माखन, मिश्री, पंचामृत, मेवा आदि का भोग लगाएं।
जन्माष्टमी पर होने वाले आयोजन
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दही हांडी: महाराष्ट्र व गुजरात में युवक समूह पिरामिड बनाकर ऊँचाई पर लटकी दही हांडी फोड़ते हैं, जो माखनचोरी की लीला दर्शाता है।
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रासलीला नाटक: वृंदावन, मथुरा और देश के अन्य हिस्सों में श्रीकृष्ण की लीलाओं पर आधारित नाटक मंचित होते हैं।
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भजन-कीर्तन: रात्रि को भक्ति गीतों, नृत्य और झांकियों का आयोजन किया जाता है।
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कृष्ण जन्माष्टमी का महत्त्व
कृष्ण जन्माष्टमी सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, यह अधर्म पर धर्म की विजय, असत्य पर सत्य की स्थापना और मनुष्य जीवन के आदर्श मार्गदर्शन का प्रतीक है।
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श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में जो उपदेश दिए, वे आज भी प्रासंगिक हैं।
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उनके जीवन से हमें प्रेम, नीति, समर्पण और कर्तव्य की सीख मिलती है।
क्या सीखें श्रीकृष्ण से?
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सच्चा प्रेम बिना किसी अपेक्षा के होता है – राधा-कृष्ण इसका उदाहरण हैं।
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कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो – अर्जुन को यही सिखाया।
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मित्रता का भाव – सुदामा संग उनका प्रेम आज भी पूजनीय है।
कृष्ण जन्माष्टमी 2025 न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह दिन हमें अपने जीवन के उद्देश्य, व्यवहार और आचरण की ओर ध्यान देने की प्रेरणा देता है। इस दिन हम केवल उपवास या पूजा न करें, बल्कि श्रीकृष्ण के बताए मार्ग पर चलने का भी संकल्प लें।
राधे राधे! जय श्रीकृष्ण!