जल्दी करें आवेदन वरना बाद में पछताएंगे। किसानों को मिलेगा 2000 रुपये प्रति एकड़ अनुदान। लास्ट डेट से पहले करें रजिस्ट्रेशन, वरना छूट जाएगा सब्सिडी का मौका।

Haryana Agriculture subsidy Scheme: हरियाणा में खरीफ सीजन की नकदी फसलों में कपास का विशेष महत्व है। कपास को सफेद सोना भी कहा जाता है क्योंकि यह किसानों को अच्छी आय देती है। प्रदेश के लगभग 17 जिलों में कपास की खेती की जाती है और लाखों किसान अपनी रोज़ी-रोटी के लिए इस फसल पर निर्भर हैं। कपास से न सिर्फ कपड़ा उद्योग को कच्चा माल मिलता है बल्कि यह किसानों के लिए नकदी आय का प्रमुख स्रोत भी है।
हरियाणा सरकार ने कपास की पैदावार बढ़ाने और किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से एक नई योजना शुरू की है। इस योजना के तहत किसानों को सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करने और एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार का मानना है कि यदि खेती में आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएँ तो पैदावार और मुनाफा दोनों बढ़ सकते हैं।
आजकल किसान बड़े पैमाने पर बी.टी. हाईब्रिड कपास की किस्में उगा रहे हैं। अगर इन किस्मों की बिजाई सही समय पर और सही तरीके से की जाए तो उत्पादन अधिक मिलता है। बी.टी. कपास की बिजाई का सही समय 15 अप्रैल से 30 मई तक माना गया है। पौधों की कतार से कतार की दूरी 67.5 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इसके अलावा 100 सेंटीमीटर कतार और 45 सेंटीमीटर पौधे की दूरी का विकल्प भी अपनाया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कपास को पूर्व से पश्चिम की दिशा में बोया जाए तो पैदावार उत्तर से दक्षिण दिशा में बोई गई कपास से अधिक मिलती है।
बीज अंकुरण के 2 से 3 हफ्ते बाद कमजोर, रोगग्रस्त और कीट-प्रभावित पौधों को हटा देना चाहिए। एक जगह पर केवल एक स्वस्थ पौधा छोड़ना जरूरी है। पहली सिंचाई से पहले पौधों की छंटाई पूरी कर लेनी चाहिए। इन छोटे-छोटे कदमों से कपास की पैदावार में बड़ा फर्क आता है।
कपास की अच्छी पैदावार पाने के लिए किसानों को खाद, सिंचाई, निराई-गुड़ाई और कीट नियंत्रण पर ध्यान देना होता है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार ने कपास की खेती के लिए कई वैज्ञानिक सिफारिशें की हैं। इन सिफारिशों को अपनाने से किसानों को अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता वाली फसल मिल सकती है।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य कपास की खेती में सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग बढ़ाना और एकीकृत कीट प्रबंधन अपनाना है। सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, आयरन और बोरॉन फसल की वृद्धि के लिए जरूरी हैं। इनकी कमी से पौधों का विकास रुक सकता है और पैदावार कम हो जाती है। इसी तरह एकीकृत कीट प्रबंधन से फसल को हानिकारक कीटों से बचाया जा सकता है। यह तरीका पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है क्योंकि इसमें रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल कम किया जाता है।
यह योजना हरियाणा के 17 जिलों में लागू की गई है। इनमें सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, जींद, रोहतक, झज्जर, नारनौल, फरीदाबाद, पलवल, मेवात, गुरुग्राम, रेवाड़ी, भिवानी, चरखी दादरी, पानीपत, सोनीपत और कैथल शामिल हैं। इन जिलों में कपास किसान इस योजना का सीधा लाभ उठा सकते हैं।
किसानों को इस योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा। सबसे पहले किसान को ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ पोर्टल (https://fasal.haryana.gov.in) पर पंजीकरण करना होगा। पंजीकरण के बाद उन्हें विभाग के पोर्टल(https://agriharyana.gov.in/applyschemes) पर अपनी कपास की फसल का विवरण भरना होगा। किसान सूक्ष्म पोषक तत्व या कीट प्रबंधन के लिए जो भी कृषि सामग्री खरीदेंगे, वह केवल सरकारी, सहकारी समिति या अधिकृत विक्रेता से ही खरीदनी होगी। खरीद के बाद बिल पोर्टल पर अपलोड करना होगा। कृषि विभाग का स्टाफ खेत और बिल की जांच करेगा और जांच सही पाए जाने पर अनुदान की राशि सीधे किसान के बैंक खाते में भेज दी जाएगी।
इस योजना के तहत किसानों को 50 प्रतिशत या अधिकतम 2000 रुपये प्रति एकड़ की सब्सिडी दी जाएगी। एक किसान को अधिकतम 2 एकड़ तक का ही लाभ मिल पाएगा।
इस योजना के लिए आवेदन की तिथियाँ भी निर्धारित की गई हैं। किसान भाई 01 अगस्त 2025 से पंजीकरण कर सकते हैं और अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2025 रखी गई है। इसलिए किसानों को चाहिए कि वे समय रहते पंजीकरण कर लें ताकि योजना का लाभ आसानी से मिल सके।
इस योजना से किसानों को कई फायदे होंगे। खेती की लागत कम होगी, पैदावार बढ़ेगी और कपास की गुणवत्ता भी सुधरेगी। सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि कीटों और बीमारियों से फसल की सुरक्षा हो सकेगी। इससे किसान ज्यादा मुनाफा कमा पाएंगे और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
किसान भाई अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।
कुल मिलाकर कहा जाए तो हरियाणा सरकार की यह योजना किसानों के लिए बहुत लाभदायक है। यह योजना न सिर्फ कपास की पैदावार बढ़ाएगी बल्कि खेती को टिकाऊ और लाभकारी भी बनाएगी। अगर किसान सुझाए गए तरीके अपनाएँ तो वे कम लागत में अधिक पैदावार लेकर अपनी आय को दोगुना करने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।