जन सुराज के प्रशांत किशोर आखिर कितने करोड़ के मालिक हैं? आंकड़ा सुनकर यकीन नहीं होगा!

खबरदार India: भारत की राजनीति में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो मंच पर कम, लेकिन असर हर जगह छोड़ जाते हैं। प्रशांत किशोर उन्हीं में से एक हैं — एक राजनीतिक रणनीतिकार, चुनाव अभियानों के शिल्पकार, और अब "जन सुराज" आंदोलन के संस्थापक।
लोग अक्सर जानना चाहते हैं — “आखिर प्रशांत किशोर कितने करोड़ के मालिक हैं?”
इस सवाल का जवाब सीधा नहीं, लेकिन रोचक जरूर है।
प्रशांत किशोर कौन हैं?
प्रशांत किशोर का जन्म 20 मार्च 1977 को बिहार के रोहतास ज़िले के कोनार गाँव में हुआ। उनके पिता डॉक्टर श्रीकांत पांडे सरकारी अस्पताल में चिकित्सक थे।
किशोर की शुरुआती शिक्षा बिहार में हुई और फिर वे हैदराबाद चले गए। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में संयुक्त राष्ट्र (UN) के सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में काम किया।
करीब आठ साल UN के साथ बिताने के बाद, उन्होंने भारत लौटकर राजनीति की रणनीति की दिशा में कदम रखा — और वहीं से शुरू हुआ उनका असली सफर।
राजनीति में प्रवेश और नाम की पहचान
2011-12 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनका जुड़ाव हुआ।
2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के लिए “चाय पर चर्चा” और “अबकी बार मोदी सरकार” जैसे अभियानों को रणनीतिक रूप दिया।
यहीं से उनका नाम देशभर में जाना जाने लगा।
बाद में उन्होंने “Indian Political Action Committee (I-PAC)” नाम की संस्था बनाई, जिसने कई राज्यों में चुनावी अभियान संभाले —
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नीतीश कुमार (बिहार, 2015),
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अमरिंदर सिंह (पंजाब, 2017),
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ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल, 2021),
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और जगनमोहन रेड्डी (आंध्र प्रदेश, 2019)।
हर जगह उनकी रणनीति ने निर्णायक भूमिका निभाई।
जन सुराज की स्थापना
2022 में प्रशांत किशोर ने “जन सुराज” अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य था — “राजनीति को जनता से जोड़ना।”
2 अक्टूबर 2024 को इस अभियान ने राजनीतिक रूप लिया और “जन सुराज पार्टी” के रूप में पंजीकृत हुई।
अब वे सिर्फ रणनीतिकार नहीं, बल्कि खुद एक सक्रिय राजनीतिक नेता हैं।
प्रशांत किशोर की कमाई के स्रोत
हालांकि प्रशांत किशोर ने कभी सार्वजनिक रूप से अपनी पूरी संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया, लेकिन उनके काम और प्रभाव के आधार पर उनके आय स्रोत साफ देखे जा सकते हैं:
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चुनावी परामर्श (Political Consulting)
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I-PAC के ज़रिए वे अलग-अलग राजनीतिक दलों को चुनावी रणनीति, डाटा एनालिटिक्स, प्रचार और जनसंपर्क अभियानों की सेवा देते हैं।
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रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक बड़े राज्य या राष्ट्रीय स्तर के अभियान के लिए उनकी टीम की फीस करोड़ों में होती है।
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सलाहकार के रूप में फीस
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खुद प्रशांत किशोर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वे एक चुनावी परियोजना के लिए 100 करोड़ रुपये तक फीस लेते थे।
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हालांकि यह टीम और संस्थागत खर्चों सहित राशि होती है, व्यक्तिगत आय इससे कम रहती है।
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संस्थागत निवेश (I-PAC)
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I-PAC आज एक बड़ी राजनीतिक कंसल्टिंग कंपनी बन चुकी है, जिसकी मूल्यांकन (valuation) कई सौ करोड़ रुपये में माना जाता है।
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प्रशांत किशोर इसके संस्थापक हैं, तो अप्रत्यक्ष रूप से इसका हिस्सा उनकी संपत्ति में जुड़ता है।
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प्रशांत किशोर की Net Worth कितनी है?
इस पर कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स और अनुमानों के आधार पर उनकी कुल संपत्ति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
इन सबके बीच, तर्कसंगत अनुमान यही कहता है कि प्रशांत किशोर की नेट वर्थ लगभग ₹35–50 करोड़ के बीच हो सकती है।
इसमें उनकी संस्थागत हिस्सेदारी, परामर्श कार्य, निवेश और संपत्ति शामिल हैं।
क्या वे राजनीति से पैसा कमाते हैं?
अब तक की जानकारी के अनुसार, “जन सुराज” पार्टी में प्रशांत किशोर ने खुद कोई वेतन या लाभ नहीं लिया है।
उनका कहना है कि पार्टी चलाने के लिए वे जनता के योगदान और अपने पूर्व व्यवसायिक अनुभव से प्राप्त संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं।
यानी फिलहाल वे अपने नाम या पद से प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ नहीं कमा रहे।
जीवनशैली और संपत्ति
प्रशांत किशोर का जीवन अपेक्षाकृत सादा माना जाता है।
वे महंगी गाड़ियों या दिखावटी संपत्ति से दूर रहते हैं।
उनके पास पटना और दिल्ली में आवास हैं, लेकिन उनके नाम पर कोई बड़ी व्यावसायिक संपत्ति की सार्वजनिक जानकारी नहीं है।
उनकी पत्नी जह्नवी दास डॉक्टर हैं, और परिवार निजी जीवन को मीडिया की नजरों से दूर रखता है।
क्यों चर्चा में रहते हैं?
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उन्होंने बीजेपी, कांग्रेस, टीएमसी और वाईएसआरसीपी — चारों राजनीतिक खेमों के साथ काम किया है।
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कई बार उनकी राजनीतिक निष्पक्षता पर सवाल उठे, लेकिन वे खुद को “पेशेवर सलाहकार” के रूप में पेश करते हैं।
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जन सुराज आंदोलन के बाद वे पहली बार खुद जनता के सामने “नेता” के रूप में आए हैं।
प्रशांत किशोर की उनकी नेट वर्थ करोड़ों में जरूर है, लेकिन उनका वास्तविक प्रभाव उन करोड़ों से कहीं ज़्यादा है जो उन्होंने जनता की समझ, रणनीति और जनसंपर्क के ज़रिए कमाया है। उन्होंने यह साबित किया है कि राजनीति में शक्ति सिर्फ कुर्सी से नहीं, बल्कि सोच से भी आती है।