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NISAR सैटेलाइट लॉन्च, 30 जुलाई को होगा नासा-इसरो का बड़ा मिशन, आइए जानते हैं NISAR सैटेलाइट मिशन, लॉन्च और उससे होने वाले फायदों को

भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसियां इसरो (ISRO) और नासा (NASA) 30 जुलाई 2025 को संयुक्त रूप से विकसित NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar)सैटेलाइट को लॉन्च करने जा रही हैं। यह उन्नत पृथ्वी अवलोकन मिशन धरती की सतह में हो रहे बदलावों का सबसे सटीक विश्लेषण करने में मदद करेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह सैटेलाइट भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, ग्लेशियर पिघलने और भूमि खिसकने जैसी प्राकृतिक घटनाओं की निगरानी में ऐतिहासिक भूमिका निभाएगा।
 
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NISAR सैटेलाइट अंतरिक्ष में पृथ्वी के ऊपर – नासा और इसरो का संयुक्त मिशन

मिशन का इतिहास और विकास

NISAR परियोजना की शुरुआत 2014 में हुई थी, जब नासा और इसरो ने मिलकर एक डुअल-बैंड रडार सैटेलाइट विकसित करने का निर्णय लिया। इस परियोजना का उद्देश्य धरती की सतह पर होने वाले सूक्ष्म बदलावों को अभूतपूर्व सटीकता से मापना है।

शुरुआत में इसे 2023 में लॉन्च करने की योजना थी, लेकिन अतिरिक्त तकनीकी परीक्षणों और उन्नत सेंसर जोड़ने के कारण इसे 2025 तक स्थगित कर दिया गया।

इसरो के प्रमुख ने कहा कि "यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की तकनीकी क्षमता को अगले स्तर तक ले जाएगा और वैश्विक आपदा प्रबंधन प्रणाली को मजबूत करेगा।"

 

लॉन्च की तैयारी और स्थान

लॉन्च की तारीख: 30 जुलाई 2025

लॉन्च स्थल: श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश (Satish Dhawan Space Centre)

रॉकेट: GSLV Mk II का उपयोग होगा।

मिशन अवधि: कम से कम 3 साल, नोट: इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है।


तकनीकी विशेषताएं (Technical Features)

  • डुअल-फ्रिक्वेंसी SAR: NISAR में L-बैंड और S-बैंड Synthetic Aperture Radar लगे हैं, जो जमीन के नीचे तक की गतिविधियों का विश्लेषण कर सकते हैं।
  • उच्च-रिज़ॉल्यूशन डेटा: यह सैटेलाइट मात्र 1 सेंटीमीटर तक के बदलाव को भी रिकॉर्ड कर सकेगा।
  • ग्लोबल कवरेज: हर 12 दिनों में पूरी पृथ्वी की स्कैनिंग, जिससे लगातार डेटा उपलब्ध रहेगा।
  • सटीक मैपिंग: बाढ़, भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के लिए बेहतर भविष्यवाणी संभव होगी।

 

वैज्ञानिक लाभ और उपयोगिता

NISAR सैटेलाइट कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा:

  • भूकंप पूर्वानुमान: धरती में आने वाले तनाव को मापकर संभावित भूकंप का समय से पहले संकेत मिलेगा।
  • ज्वालामुखी निगरानी: विस्फोट से पहले लावा गतिविधियों और सतह उभारों का पता लगाया जा सकेगा।
  • ग्लेशियर और समुद्री स्तर अध्ययन: यह सैटेलाइट जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और समुद्री स्तर में बढ़ोतरी का सटीक आंकलन करेगा।
  • कृषि और जल संसाधन: भूमि की नमी और जल उपलब्धता का आकलन कर किसानो के लिए उपयोगी डेटा उपलब्ध कराया जाएगा।

 

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए महत्व

NISAR न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक अहम कदम है। इस मिशन से इसरो की क्षमताओं में वृद्धि होगी और भारत को वैश्विक अंतरिक्ष शोध में अग्रणी बनाएगा।
इसरो की क्षमताओं में वृद्धि होगी और भारत को वैश्विक अंतरिक्ष शोध में अग्रणी बनाएगा।

देश में आपदा प्रबंधन के लिए अत्याधुनिक डेटा उपलब्ध होगा।

यह मिशन भविष्य के भारतीय मानव मिशन और चंद्र/मंगल अभियानों में तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।


भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों पर प्रभाव

विशेषज्ञों का मानना है कि NISAR मिशन की सफलता के बाद भारत और अमेरिका के बीच और भी उन्नत मिशन लॉन्च होंगे। इनमें जलवायु परिवर्तन अध्ययन, मंगल ग्रह पर अनुसंधान और अन्य ग्रहों की खोज शामिल हो सकती है।

नासा वैज्ञानिकों का कहना है कि "NISAR मिशन से हमें धरती की गतिविधियों का वह डेटा मिलेगा, जो पहले कभी उपलब्ध नहीं था। यह आने वाले स्पेस मिशनों के लिए नींव साबित होगा।"

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