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गोलियों से गूँजी संसद के बाहर की सड़कें: नेपाल में लोकतंत्र पर संकट?

काठमांडू की सड़कों पर गूंज रहे नारों के बीच गोलियों की आवाज़ ने सबको दहला दिया। सोशल मीडिया बैन का विरोध करते हुए Gen Z अब सरकार से सीधी टक्कर ले रही है। मौतें और घायलों की बढ़ती गिनती ने नेपाल के लोकतंत्र पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
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Nepal social meida nam 2025: नेपाल सोशल मीडिया प्रतिबंध (Nepal social media ban) की घोषणा ने 4 सितंबर 2025 को देश में भूचाल ला दिया। सरकार ने उन सभी बड़ी ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स जैसे फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब, X, रेडिट, लिंक्डइन इत्यादि को ब्लॉक कर दिया, जो नेपाली नियमों के तहत पंजीकरण नहीं कर सके।  इसके विरोध में Gen Z सड़कों पर उतरी। काठमांडू में हिंसक प्रदर्शन, कई मौतें और सैकड़ों घायल हुए।

सरकार का कहना था कि ये कदम ऑनलाइन अपराध, अफ़वाह, हेट स्पीच और साइबर धोखाधड़ी को रोकने के लिए जरूरी था। लेकिन इस फैसले ने देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था, शिक्षा, विधागत स्वतंत्रता, और खासकर युवा पीढ़ी की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर गहरा हमला किया।

The Final Revolution”: Gen Z का आत्मनिर्भर विद्रोह
यह विरोध केवल सोशल मीडिया तक सीमित नहीं रहा। Gen Z, यानी 1995–2010 के बीच जन्मे युवा, ने इस प्रतिबंध को स्वतंत्रता का गला घोंटने वाला घात माना। उन्होंने इसे “The Final Revolution – We Are Punching Up” का नारा देते हुए आमेरिकीकरण और भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ मोर्चा खोल दियाl

काठमांडू से लेकर पोखरा, विराटनगर, धरान तक युवा एकजुट हुए और सोशल मीडिया बंद के विरोध से भ्रष्टाचार, नेपोटिज़्म और बेइमानी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से जहां अपनी पढ़ाई, नौकरी, पहचान और आवाज़ बनायी़ थी वह सब छीन लिया गया। यह एक पीढ़ी के लिए व्यक्तिगत आत्म-आत्मनिर्भरता पर हमला थाl

8 सितंबर: काठमांडू में हिंसा, मौतें और घायल
8 सितंबर को विरोध हिंसक हो गया। काठमांडू में हजारों युवा संसद भवन की ओर बढ़े। जब प्रदर्शनकारियों ने सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की, तब पुलिस ने आंसू गैस, वाटर कैनन, रबर की गोलियां, और अंततः गोली फायर की।

मौतों का आंकड़ा अस्पष्ट है AP ने कम से कम 10 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की, जबकि हिमालयन टाइम्स की रिपोर्ट में 14 लोगों की मौत बताई गई है। स्थानीय मीडिया और सरकारी टीवी में यह संख्या 6–10 के बीच बतायी गई है। घायलों की संख्या भी भिन्न-भिन्न रिपोर्ट्स में 50 से लेकर 150+ तक बतायी गई है । इस बीच संसद परिसर और आसपास के इलाकों में कर्फ्यू लगाया गया, और सुरक्षा बढ़ा दी गई।

समाजिक और आर्थिक प्रभाव: शिक्षा, व्यवसाय और डिजिटल जीवन पर हमला
बैन ने कई छोटे व्यवसायों, फ्रीलांस कंटेंट क्रिएटरों, डिजिटल मार्केटरों, और स्टार्टअप्स को सीधे प्रभावित किया। फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स से विज्ञापन और कमाई का मुख्य रास्ता बंद हो गया।

विशेषज्ञों ने चेताया कि यह नेपाल के डिजिटल निवेश आकर्षण, विदेशी निवेश, और LDC श्रेणी से ग्रेजुएशन के बाद आर्थिक समर्थन को जोखिम में डाल सकता है।

NHRC (National Human Rights Commission) ने इस बंदी को लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताया और सरकार से पुनर्विचार की माँग की। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों जैसे CPJ ने इसे “प्रेस फ़्रीडम के लिए ख़तरनाक मिसाल” करार दिया।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ: सरकार और समर्थकों के तर्क, विपक्ष की आलोचना
प्रधानमंत्री KP शर्मा ओली ने यह प्रतिबंध “राष्ट्र की संप्रभुता” सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी बताया। उन्होंने विरोधियों को “पुतले” और “विरोध के लिए विरोध” करने वाले नाम दिए । अर्कत, काठमांडू के मेयर बलेंद्र शाह ने इसे एक जन-युवा आंदोलन बताया और नेताओं से इसे पॉलिटिकल हितों से अलग रखने का,पत्रकारों और मानवाधिकार संगठनों ने इसे अभिव्यक्ति के अधिकार पर हमला करार दिया और सरकार के कानून को नरम करने की मांग की।

डिजिटल आज़ादी
नेपाल में सोशल मीडिया बन्द ने Gen Z को सिर्फ डिजिटल उपकरणों से वंचित नहीं किया उन्होंने इसे अधिकारों, दृष्टिकोण, रोजगार और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला समझा। इस विरोध ने डिजिटल दुनिया से सड़कों तक विस्तार लिया, और अब यह सिर्फ सोशल मीडिया का मुद्दा नहीं रहा यह सरकारी पहचान की लड़ाई बन चूका है।

नेपाल का यह संकट अभी भी तेज़ी से विकसित हो रहा है। क्या सरकार वापस कदम उठाएगी? क्या सोशल मीडिया कंपनियाँ वापस पंजीकरण करेंगी? और क्या यह विद्रोह नेपाल के राजनीतिक और आर्थिक भविष्य पर दीर्घकालिक असर डालेगा? ये सवाल अब राष्ट्र के सामने हैं।
 

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