KHABARDAR INDIA: गलवान घाटी के खूनी टकराव के बाद जहां सीमा पर तनाव जारी है, वहीं भारत और चीन के बीच यूरिया और डीजल का व्यापार फिर से शुरू हो गया है। यह अचानक हुई आर्थिक साझेदारी कई सवाल खड़े करती है: क्या यह सिर्फ आर्थिक मजबूरी है या एक सोची-समझी कूटनीतिक चाल? क्या अमेरिका की बढ़ती चुनौतियों के बीच दोनों एशियाई शक्तियां मिलकर एक नए भू-राजनीतिक समीकरण को जन्म दे रही हैं? यह व्यापारिक मेल-जोल, सीमा पर तनाव के बावजूद, दोनों देशों के लिए फायदेमंद कैसे है, यह जानना दिलचस्प होगा।
यूरिया का आयात: भारतीय किसानों के लिए राहत
भारत दुनिया में यूरिया का सबसे बड़ा आयातक है और अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर रहता है। चीन पारंपरिक रूप से भारत के लिए यूरिया का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है। हालांकि, पिछले कुछ समय से चीन ने अपने घरेलू उपयोग और वैश्विक आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए यूरिया के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा था, जिससे भारत में यूरिया की आपूर्ति प्रभावित हो रही थी।
हाल की रिपोर्टों के अनुसार, चीन ने भारत को यूरिया निर्यात पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी है। इस कदम को दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने के एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब भारत के विभिन्न हिस्सों में किसानों को उर्वरकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस ढील के बाद, भारत चीन से 3 लाख टन तक यूरिया का आयात कर सकता है। हालांकि, यह मात्रा बहुत अधिक नहीं है, लेकिन इसे एक सकारात्मक शुरुआत माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह धीरे-धीरे बढ़ सकता है, जिससे वैश्विक आपूर्ति में सुधार होगा और कीमतें कम होने की उम्मीद है।
डीजल का निर्यात: भारत की बढ़ती रिफाइनिंग क्षमता का प्रमाण
दूसरी ओर, भारत ने चीन को डीजल का निर्यात फिर से शुरू कर दिया है। यह एक महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि अप्रैल 2021 के बाद यह पहली बार है कि भारत से कोई डीजल शिपमेंट चीन की ओर जा रहा है। यह कदम कई मायनों में अहम है।
बढ़ती क्षमता: यह भारत की तेल शोधन (refining) क्षमता का प्रमाण है। भारत कच्चे तेल का एक बड़ा आयातक है, लेकिन अपनी परिष्कृत (refined) उत्पादों की क्षमता के कारण वह अब एक निर्यातक भी बन गया है।
भू-राजनीतिक बदलाव: यह कदम ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं। भारत, रूसी कच्चे तेल का एक प्रमुख खरीदार बन गया है और उसकी रिफाइनिंग कंपनियां इस कच्चे तेल को परिष्कृत कर रही हैं। चीन को डीजल का निर्यात करना, वैश्विक ऊर्जा बाजार में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। यह दोनों देशों के बीच एक प्रकार के आर्थिक सहयोग को भी बढ़ावा देता है।
क्या यह संबंधों में सुधार का संकेत है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यूरिया और डीजल के व्यापार में हुई ये गतिविधियां दोनों देशों के बीच तनाव कम होने का संकेत दे सकती हैं। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब भारत और चीन दोनों ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियों का सामना कर रहे हैं। इस स्थिति ने दोनों एशियाई देशों को एक-दूसरे के करीब आने का अवसर दिया है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन व्यापारिक गतिविधियों के अलावा, दोनों देशों के बीच अन्य कूटनीतिक और राजनीतिक प्रयास भी चल रहे हैं। हालांकि, इन व्यापारिक कदमों को दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की दिशा में एक सकारात्मक और महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।